Muni Shri 108 Vihasant Sagarji Maharaj
Name before Deeksha |
Pankaj Jain |
Date Of Birth |
12 Aug, 1983 |
Place Of Birth |
jagdalpur (Bastar), Chattisgarh. |
Father's Name |
Shri Brijesh Jain |
Mother's Name |
Smt.Meena Jain |
No of Siblings |
2(1 brother , 1sister) |
Date of Chulak Deeksha | 24 May,2004(shrut Panchmi) |
Place of Deeksha | Nagpur ,Maharashtra |
Deeksha Guru | Acharya Virag Sagar Maharaj |
Journey after Deeksha | Veena, Bhind, Agra, Gwalior, Gaziabad, Badot, Delhi, Delhi |
Munishri 108 Vijayesh Sagarji Maharaj
Name before Deeksha |
Manish Jain |
Date Of Birth |
20 Feb, 1978 |
Place Of Birth |
Bhind, M.P. |
Father's Name |
Shri Surajmal Jain |
Mother's Name |
Smt.Kamla Devi Jain |
No of Siblings |
4(2 brother,2 sister) |
Date of Chulak Deeksha | 23 Sept,2009 |
Place of Deeksha | Gandhinagar, Gujrat |
Deeksha Guru | Acharya Virag Sagar Maharaj |
Journey after Deeksha | Gaziabad, Badot, Delhi, Delhi |
Br.Priyanka Didi
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जिनवाणी मैं मैंने ऐसा पढ़ा है की किसी भी कार्य के करने के लिए निम्मित की आवश्यकता होती है ।यह बात मेरे साथ भी घटित हुई की मेरा कल्याण गुरु विहार्ष के निम्मित से होना था । मेरी आत्मा बोली की मेरा कल्याण गुरु विहर्ष के निम्मित से ही होगा ,इसलिए इन गुरु को ही तू अपने गुरु को समर्पित कर दें । मैंने अपनी आत्मा की आवाज़ को सुनकर मोक्ष पथ पर बदने का निर्णय लिया है । गुरुदेव जितनी प्रभावना करतें है ,उतनी ही त्याग , तपस्या और साधना करतें है । जैसे भगवन आदिनाथ ने दीक्षा से पहले देवी नीलांजना के नृत्य मैं म्रत्यु को देख लिया था ,वैसे ही इन मुनिवर की हंसी मैं गंभीरता को निहारना होगा ।गुरुदेव की चिंतन शैली ,हाज़िर जवाबी समाधान ऐवम धर्म की गहराही की बातें भी ऐवुम स्वाध्याय मे तत्त्वचर्चा मैं आज के परिपेक्ष्य मैं और आज की लौकिक दैनिक चर्चा मे घटित करके सबका मन जीत लेते हैं । मेरी प्रार्थना है की मेरे गुरुदेव तीर्थंकर बनें और गुरुदेव खूब धर्म की प्रभावना करें ।
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Br.Reena Didi
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पुण्य योग से मनुष्य पर्याय और यह भी पुण्य की जैन कुल मैं जन्म होना और किस्मत से गुरु मिल गए।फिर मैंने सोचा की समय का भरोसा नहीं होता,इसलिए मुझे मत पिता या गुरु मैं से किसी एक को चुनना था ।मैंने विचार किया की गुरु मैं मत पिता समाहित होते है, इसलिए मैंने जीवन के हर क्षण को गुरु को समर्पित कर दिया ।अब हार जीत गुरु के चरणों मैं छोड़ दी है । गुरुदेव आपकी प्रभावना सूर्य की किरणों की तरह सारी दुनिया मैं फैलती रहे। मेरा जब भी मरण हो, तो आर्यिका पद के साथ समाधी मरण हो । |